ख़्वाबों की दुनिया (मज्मुआ-ए-ग़ज़ल)

Duration: 24 Months
Book Pages: 102

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ख़्वाबों की दुनिया
 
ख़्वाब, आम इंसान के देखे हुवे ख़्वाब. एक आम इंसान जो देखता है, जो समझता है, जो महसूस करता है वही तो ख़्वाब है. कभी खुशियों को लेकर उड़ते ख़्वाब, कभी ग़म की गहराई में डूबते ख़्वाब, कभी भीड़ भाड़ में चहकते ख़्वाब तो कभी तन्हाई में सिसकते ख़्वाब. अगर ये ख़्वाब ना हो तो फिर आम इंसान के पास रखा ही क्या है. इन्हीं ख्वाबों को, इन्हीं आम इंसान के ख्वाबों को, ख्वाबों की दुनियामें मैं पिरो लाया हूं अपनी गज़लों में, उम्मीद है आप तमाम को मेरी ये कोशिश पसंद आयेगी.
 
 
दुआ का तलबगार
सय्यद ज़हिरोद्दीन साजीद

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