प्रभुराव कंबळीबाबा : व्यक्तित्व एवं कृतित्व eBook
| Duration: | Unlimited |
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| Book Pages: | 80 |
| E-Book Price: |
₹ 24
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प्रभुराव कंबळीबाबा : व्यक्ति और कार्य चरित्रग्रंथफ प्रकाशित होते समय मुझे बेहद खुशी हो रही है क्योंकि कंबळीबाबा ने उदगीर के वीरशैव लिंगायत समुदाय के संगठन में असाधारण योगदान दिया है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगणा और गोवा के लोग कंबळीबाबा के आचार-विचारों से काफी प्रभावित थे। इस जीवनी का प्रकाशन इस जागरूकता के साथ किया जा रहा है कि नई पीढ़ी उनके चरित्र से परिचित हो।
निजाम के अत्याचारी शासन के दौरान कंबळीबाबा ने बसवेश्वर के विचारों के आधार पर अपने समाज को संगठित कर एक नए समाज निर्माण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्हें अपना समुदाय उतना ही प्रिय था जितनी अपनी साँसें। वे अपने समाज में इतना घुलमिल गए थे कि कंबळीबाबा मतलब लिंगायत समाज और लिंगायत समाज का मतलब कंबळी बाबा। वे चौबीस घंटे अपने दिल और दिमाग से केवल लिंगायत समाज का चिंतन करते थें। वे समाज की हर गतिविधि में प्रतिभागी होते हुए भी सबसे अलग होते थे। उनमें अहंकार का नामोनिशान तक नहीं था। उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति उनका ही मुरीद हो जाता था। उनमें लोगों को जोड़ने की अदभुत कला थी। हर छोटे-बड़े व्यक्ति के साथ वे समान व्यवहार करते थे। उनके इस व्यवहार से प्रभावित होकर कई लोग उनसे जी जान से प्यार करते थे। बहुतों ने अपना पूरा जीवन उनके साथ बिताया। उनके संपर्क में आने वालो में से कई लोगों ने समाजसेवा के लिए अपना जीवन समर्पित किया।
कंबळीबाबा महात्मा बसवेश्वर के विचारों को अपना आदर्श मानते थे। बसवेश्वर का जीवन दर्शन उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गया था इसलिए कई सामाजिक अवांछित रूढ़ियों के प्रति उनके मन में घृणा थी वे केवल दहेज न लेने वालों के ही विवाह में शरीक होते थे। उन्होंने अपने घर से ही दहेज न लेने की प्रथा शुरू की। लिंगायत समाज के जो लोग अस्पृशता का पालन करते थे वे उनकी भर्त्सना करते थे लेकिन अंतर्जातीय विवाह करने वाले पति-पत्नियों का सामूहिक सत्कार करते थे।
कंबळीबाबा भलि-भाँति जानते थे कि शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बिना समाज की उन्नति संभव नहीं इसलिए उन्होंने अनेक महाविद्यालयों के निर्माण में सक्रीय सहयोग दिया लेकिन वे किसी शैक्षिक संस्था के अध्यक्ष पद पर विराजमान नहीं हुए। उन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य को उत्तराधिकारी के रूप में नहीं चुना। उन्होंने समाजोन्नति के लिए अपना घर, अपनी खेती तथा पत्नी के गहने तक बेच दिए। गरीब बच्चों को शिक्षा के लिए कई प्रकार से मदद की। समर्पित भाव से समाजसेवा करने वाले मित्रों तथा कार्यकर्ताओं को मनीऑर्डर से पैसे भेजते रहे। उन्होंने अपने आचार-विचारों से समाज को संस्कारित किया।
उनकी वाणी में मिठास और चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी। वे सबसे माँ की तरह प्यार करते थे। वे धर्म के मर्म को जानते थे इसलिए उनका जीवन सार्थक हो गया इतना ही नहीं उनके कारण अनेक लोगों का जीवन सार्थक हुआ। उनकी स्मृतियों को याद करना तथा उनके दर्शन से नई पीढ़ी को परिचित कराने के उददेश से यह चरित्र लिखा गया है। यह ग्रंथ पाठक और कंबळीबाबा के बीच सेतु बने यही इसका उददेश है।
कंबळीबाबा के सुपुत्र शांतिकुमार उदगिरी ने यह पुस्तक लिखवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साथ ही कर्नाटक के हुबळी शहर के पाटील पुटटप्पा ने वृद्धवस्था में अस्वस्थता के बावजूद हमें मार्गदर्शन किया है। बीदर शहर के पत्रकार दमन पाटील ने अपनी धाराप्रवाह हिंदी में विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत पुस्तक के परिशिष्ट पर उनका साक्षात्कार दिया गया है। पूर्व प्राचार्य प्रभुदेव स्वामी और उनकी पत्नी श्रीमती सुशीलादेवी से भी कंबळीबाबा के संदर्भ में कई बार चर्चा की है। वे दोनों कंबळीबाबा के बारे में बहुत आत्मीयता से बातें करते थे।
अनुक्रम
अध्याय - १ कंबळीबाबा का व्यक्तित्व
अध्याय - २ सांस्कृतिक कार्य
अध्याय - ३ सामाजिक कार्य
अध्याय - ४ शैक्षिक कार्य
अध्याय - ५ भाषिक योगदान
परिशिष्ट
१. कविता में कंबळीबाबा
२. साक्षात्कार
३. गणमान्यों के मत
४. वंशावली
५. जीवन क्रम
संदर्भ सूची
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